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” नेपाल 2025: अस्थिर राजनीति, जनता की उम्मीदें और लोकतंत्र की नई चुनौतियाँ “
Political Crisis in Nepal केवल नेपाल की आंतरिक समस्या नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव पूरे दक्षिण एशिया पर पड़ता है। नेपाल की अस्थिर राजनीति भारत और चीन जैसे पड़ोसी देशों की रणनीति को भी प्रभावित करती है। नेपाल की भौगोलिक स्थिति और दक्षिण एशियाई राजनीति में उसकी भूमिका उसे एक अहम देश बनाती है। लेकिन बार-बार सरकार का गिरना, संविधान से जुड़ी दिक्कतें और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर अविश्वास ने देश को लगातार संकट में डाला है।

Nepal की राजनीति का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
नेपाल का राजनीतिक इतिहास राजशाही और लोकतंत्र के बीच लगातार संघर्ष का रहा है। कभी इसे ‘हिंदू साम्राज्य’ कहा जाता था, तो कभी यह माओवादी आंदोलन और जन आंदोलनों के कारण वैश्विक सुर्खियों में रहा। 1950 के दशक से ही नेपाल में लोकतांत्रिक प्रयोग शुरू हुए, लेकिन राजशाही लंबे समय तक बनी रही। राजनीतिक दलों पर पाबंदी, लोकतांत्रिक आंदोलनों और जनता की भूमिका ने अंततः नेपाल को नए संविधान और संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य की दिशा में आगे बढ़ाया।
Nepal में राजशाही और लोकतंत्र का संक्षिप्त इतिहास
नेपाल का राजनीतिक इतिहास राजशाही और लोकतंत्र के बीच निरंतर संघर्ष का गवाह रहा है। लंबे समय तक राजा महेंद्र और राजा ज्ञानेंद्र जैसे शासकों ने देश पर नियंत्रण बनाए रखा। 1960 में पंचायती व्यवस्था लागू होने से राजनीतिक दलों की स्वतंत्रता खत्म कर दी गई थी। लेकिन 1990 के जनआंदोलन ने बहुदलीय लोकतंत्र को पुनः स्थापित किया। 2001 के राजपरिवार हत्याकांड और उसके बाद राजा ज्ञानेंद्र द्वारा प्रत्यक्ष शासन ने जनता में असंतोष को और गहरा किया। यही घटनाएँ आगे चलकर लोकतांत्रिक आंदोलन को मजबूती देने लगीं और धीरे-धीरे नेपाल राजशाही से पूर्ण लोकतंत्र की ओर बढ़ा।
2008: राजशाही से संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य में परिवर्तन
2008 नेपाल की राजनीति का निर्णायक वर्ष था जब संविधान सभा ने राजशाही को खत्म कर देश को संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया। यह निर्णय न केवल नेपाल के लिए बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए ऐतिहासिक था। माओवादी आंदोलन और 2006 का जनआंदोलन इस परिवर्तन की सबसे बड़ी वजह बने। जनता ने स्पष्ट संकेत दिया कि अब सत्ता जनता के हाथों में रहनी चाहिए। हालांकि, लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव तो रखी गई, लेकिन नए संविधान और शासन व्यवस्था को लागू करने में कई कठिनाइयाँ सामने आईं। इससे यह साफ हो गया कि लोकतंत्र की यात्रा अभी आसान नहीं होने वाली है।
2015 का संविधान और राजनीति पर प्रभाव
2015 में नेपाल ने नया संविधान लागू किया, जिसने देश को संघीय संरचना और लोकतांत्रिक पहचान दी। इसमें समान अधिकार, अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व और प्रांतीय सरकारों की स्थापना की व्यवस्था की गई। लेकिन इस संविधान से हर वर्ग संतुष्ट नहीं हुआ। मधेशी और थारू समुदायों ने प्रतिनिधित्व की कमी पर सवाल उठाए और व्यापक विरोध प्रदर्शन किए। संविधान लागू होने के बाद भारत-नेपाल संबंधों में भी तनाव देखने को मिला, खासकर मधेश आंदोलन के दौरान। संविधान को नेपाल के लोकतांत्रिक भविष्य का आधार माना जाता है, लेकिन इसके असमान कार्यान्वयन ने राजनीतिक अस्थिरता को और बढ़ावा दिया।
बार-बार सरकार का गिरना और अस्थिरता
नेपाल की सबसे बड़ी समस्या है सरकार का लगातार गिरना। गठबंधन सरकारें बहुमत पर आधारित होती हैं और छोटी-सी नाराजगी भी पूरी सरकार को गिरा देती है। 1990 के बाद से नेपाल में लगभग हर प्रधानमंत्री का कार्यकाल अधूरा रहा है। संसद भंग होना, अविश्वास प्रस्ताव और नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ राजनीतिक अस्थिरता को गहराती हैं। Nepal government instability ने देश की नीतिगत निरंतरता को बाधित किया है। निवेशक और जनता दोनों ही इस अस्थिरता से परेशान रहते हैं। इस स्थिति ने लोकतंत्र पर भरोसा कम किया और विकास योजनाओं को अधूरा छोड़ दिया।
राजनीतिक दलों का विखंडन और नेतृत्व विवाद
नेपाल की राजनीति में दलों का बार-बार टूटना एक सामान्य घटना बन चुकी है। नेपाली कांग्रेस, नेकपा (यूएमएल) और माओवादी केंद्र जैसे प्रमुख दलों के अंदर गुटबाजी और नेतृत्व संघर्ष लगातार बने रहते हैं। अक्सर नेता व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को जनता के हित से ऊपर रखते हैं। यही कारण है कि मजबूत सरकार बनने के बजाय अस्थिर गठबंधन सामने आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
नेपाल का सुप्रीम कोर्ट राजनीति में कई बार निर्णायक भूमिका निभा चुका है। जब-जब प्रधानमंत्री ने संसद भंग की, सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए संसद को बहाल किया। इससे न्यायपालिका की मजबूती और स्वतंत्रता का परिचय मिलता है। कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच यह संघर्ष राजनीतिक संकट को बार-बार जन्म देता है। यह नेपाल की लोकतांत्रिक यात्रा की जटिलताओं को स्पष्ट करता है।
नेपाल का राजनीतिक इतिहास: 1768 से 2025
| Year/Period | Event/Political Development | Significance/Impact |
|---|---|---|
| 1768-1846 | नेपाल की एकीकृत राजशाही | पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल को एकीकृत किया, राजशाही स्थापित हुई। |
| 1846-1950 | राणा शासन (Rana Regime) | राणा वंश ने सत्ता पर कब्जा किया, लोकतंत्र सीमित। |
| 1950 | प्रथम लोकतांत्रिक आंदोलन | राजा त्रिभुवन ने बहुदलीय लोकतंत्र को बहाल किया। |
| 1960-1990 | पञ्चायत प्रणाली | राजा महेंद्र और राजा ज्ञानेन्द्र ने सीधी राजशाही स्थापित की। |
| 1990 | जनआंदोलन | बहुदलीय लोकतंत्र पुनर्स्थापित हुआ, संविधान लागू। |
| 1996-2006 | माओवादी विद्रोह | 10 साल का गृह युद्ध, लोकतंत्र और राजशाही पर दबाव। |
| 2001 | शाही परिवार हत्याकांड | राजा पारस और अन्य सदस्यों की हत्या, ज्ञानेन्द्र सिंह शासन। |
| 2006 | जनआन्दोलन (Loktantra Andolan) | ज्ञानेन्द्र शाह का प्रत्यक्ष शासन समाप्त, संवैधानिक लोकतंत्र। |
| 2008 | संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य | राजशाही समाप्त, नेपाल गणराज्य बना। |
| 2015 | नया संविधान लागू | संघीय गणराज्य, प्रांतीय सरकारें, अल्पसंख्यक अधिकार। |
| 2015-2025 | राजनीतिक अस्थिरता | बार-बार सरकारें गिरीं, गठबंधन टूटे, पार्टी विवाद। |
| 2025 | वर्तमान स्थिति | गठबंधन अस्थिरता, युवाओं की नाराजगी, भारत-चीन प्रभाव, आर्थिक और सामाजिक चुनौती। |
K.P. Oli Sharma
के.पी. शर्मा ओली (Khadga Prasad Sharma Oli) नेपाल के प्रमुख राजनीतिक नेता और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) के वरिष्ठ सदस्य हैं, जिनका जन्म 22 फरवरी 1952 को झापा जिले में हुआ था। वे तीन बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं (2015–2016, 2018–2021), और अपने कार्यकाल में उन्होंने नेपाल को गणतांत्रिक व्यवस्था में स्थिरता देने, आधारभूत संरचना के विकास और चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने पर जोर दिया। उनके नेतृत्व में 2015 का संविधान लागू हुआ, लेकिन संसद भंग करने और सुप्रीम कोर्ट से टकराव जैसी घटनाओं ने उन्हें विवादों में भी रखा। भारत-नेपाल संबंधों में सीमा विवाद और राजनीतिक खींचतान उनके कार्यकाल के अहम पहलू रहे। आलोचनाओं के बावजूद, ओली आज भी नेपाल की राजनीति में एक प्रभावशाली और निर्णायक व्यक्तित्व माने जाते हैं।
Gyanendra Shah
ज्ञानेन्द्र शाह नेपाल के अंतिम राजा थे, जिन्होंने दो बार गद्दी संभाली—पहली बार 1950 में शैशवावस्था में और दूसरी बार 2001 में शाही परिवार की त्रासदी के बाद। वे 2001 से 2008 तक नेपाल के संवैधानिक राजा रहे। उनके शासनकाल में माओवादी आंदोलन, राजनीतिक अस्थिरता और लोकतांत्रिक संघर्ष तेज़ हुआ। 2008 में जब नेपाल को संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया, तब राजशाही समाप्त कर दी गई और ज्ञानेन्द्र शाह का शासन भी समाप्त हो गया।
2025 की वर्तमान स्थिति
2025 में भी नेपाल की राजनीति अस्थिरता से जूझ रही है। गठबंधन सरकारों में लगातार अविश्वास और सत्ता संघर्ष देखने को मिल रहा है। विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच टकराव गहराया हुआ है। संसद भंग और सुप्रीम कोर्ट के फैसले जैसी घटनाएँ अभी भी आम हैं। जनता में यह धारणा बन चुकी है कि राजनीतिक नेता अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देते हैं। भारत और चीन का प्रभाव भी स्पष्ट दिख रहा है। हाल के महीनों में आर्थिक संकट और बेरोजगारी ने जनता की नाराजगी को और बढ़ा दिया है। कुल मिलाकर, 2025 में भी नेपाल स्थिरता से दूर है।
गठबंधन सरकार में अस्थिरता
2025 में भी नेपाल गठबंधन राजनीति की अस्थिरता से जूझ रहा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच अविश्वास इतना गहरा है कि सरकार का कार्यकाल पूरा होना कठिन माना जा रहा है।
संविधान सुधार की मांगें
मधेशी और अन्य जातीय समूह 2015 के संविधान में संशोधन की मांग दोहरा रहे हैं। उनका मानना है कि संविधान उनकी आकांक्षाओं को पूरा नहीं करता।
आर्थिक संकट और बेरोजगारी
नेपाल की अर्थव्यवस्था धीमी गति से बढ़ रही है। बेरोजगारी और महंगाई जनता की सबसे बड़ी चिंता बनी हुई है। बड़ी संख्या में युवा रोजगार के लिए विदेश पलायन कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार और प्रशासनिक समस्याएँ
नेपाल की राजनीति में भ्रष्टाचार एक गंभीर चुनौती है। नेताओं पर घोटालों और सत्ता के दुरुपयोग के आरोप अक्सर लगते रहते हैं। प्रशासनिक ढांचा राजनीतिक हस्तक्षेप से प्रभावित होता है, जिससे नीतियाँ सही ढंग से लागू नहीं हो पातीं। भ्रष्टाचार के कारण विकास परियोजनाएँ अधूरी रह जाती हैं और विदेशी निवेशक भी अस्थिर वातावरण से दूर रहते हैं।
भारत और चीन का भू-राजनीतिक प्रभाव
नेपाल की भौगोलिक स्थिति उसे भारत और चीन दोनों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है। South Asian politics में नेपाल अक्सर इन दोनों शक्तियों के बीच संतुलन साधने की कोशिश करता है। राजनीतिक अस्थिरता के समय दोनों देश नेपाल पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करते हैं। भारत सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से करीब है, जबकि चीन आर्थिक सहयोग और बुनियादी ढांचे में निवेश करके अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। यह प्रतिस्पर्धा कभी-कभी नेपाल की संप्रभुता और आंतरिक राजनीति को प्रभावित करती है। इसलिए नेपाल की विदेश नीति और आंतरिक संकट गहराई से आपस में जुड़े हुए हैं।
अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका
संयुक्त राष्ट्र (UN) ने शांति प्रक्रिया और माओवादी विद्रोहियों के मुख्यधारा में आने में अहम भूमिका निभाई। सार्क (SAARC) जैसे क्षेत्रीय संगठन ने नेपाल को दक्षिण एशियाई राजनीति से जोड़ने का अवसर दिया। विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक जैसे संस्थान नेपाल को आर्थिक सहायता देते रहे हैं। हालांकि, राजनीतिक अस्थिरता के कारण इन सहयोगों का प्रभाव सीमित रह गया।
संघीय ढांचे को लागू करने की चुनौतियाँ
2015 के संविधान ने नेपाल को संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य का रूप दिया, लेकिन इस संघीय ढांचे को लागू करना आसान नहीं रहा। केंद्र और प्रांतीय सरकारों के बीच संसाधन और अधिकारों के बंटवारे पर विवाद लगातार चलता है। राज्यों को वित्तीय स्वायत्तता और प्रशासनिक क्षमता की कमी महसूस होती है। कई बार केंद्र सरकार राज्यों पर नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश करती है, जिससे टकराव और गहरा जाता है।
युवाओं की असंतुष्टि और राजनीति से दूरी
नेपाल की युवा पीढ़ी राजनीतिक अस्थिरता और रोजगार की कमी से गहराई से निराश है। अधिकांश युवा यह मानते हैं कि नेता केवल सत्ता संघर्ष में व्यस्त रहते हैं और जनता की समस्याओं का समाधान नहीं करते। विदेशों में पलायन करने वाले नेपाली युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो देश की मानव संसाधन शक्ति को कमजोर करता है। राजनीतिक दलों में युवाओं की भागीदारी भी बहुत सीमित है। यही कारण है कि युवा धीरे-धीरे राजनीति से कटते जा रहे हैं। यदि लोकतंत्र को मजबूत करना है, तो युवाओं की सक्रिय भूमिका सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।
सिविल सोसायटी और मीडिया की भूमिका
नेपाल में नागरिक समाज और मीडिया राजनीतिक जवाबदेही सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। मीडिया अक्सर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करता है, जिससे जनता को सच्चाई जानने का मौका मिलता है। सिविल सोसायटी संगठन लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने और मानवाधिकारों की रक्षा करने का काम करते हैं। सोशल मीडिया के आने से युवाओं और नागरिकों को अपनी आवाज उठाने का नया मंच मिला है। हालांकि, राजनीतिक दबाव और कभी-कभी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक भी देखने को मिलती है। इसके बावजूद, ये संस्थाएँ नेपाल के लोकतंत्र की रीढ़ साबित हो रही हैं।
Political crisis in Nepal के आर्थिक परिणाम
Nepal political uncertainty का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। बार-बार सरकार बदलने से नीतिगत निरंतरता टूट जाती है और विदेशी निवेशक पीछे हट जाते हैं। पर्यटन, जो नेपाल की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है, राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक आंदोलनों के कारण प्रभावित होता है। रोजगार की कमी और महंगाई भी जनता के जीवन स्तर को गिराती है। आर्थिक असुरक्षा के चलते हजारों नेपाली मजदूरी के लिए विदेश पलायन करते हैं। राजनीतिक अस्थिरता ने नेपाल की विकास दर को भी धीमा कर दिया है, जिससे जनता की उम्मीदें अधूरी रह जाती हैं।
Political crisis in Nepal का शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक सेवाओं पर असर
राजनीतिक अस्थिरता का असर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी क्षेत्रों पर गहराई से पड़ता है। सरकार बदलने से नीतियाँ अधूरी रह जाती हैं और योजनाओं का क्रियान्वयन रुक जाता है। शिक्षा क्षेत्र में सुधार अधूरा रह जाता है और स्वास्थ्य सेवाएँ भी अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँच पातीं। ग्रामीण इलाकों में अस्पतालों और स्कूलों की स्थिति खराब है। लगातार राजनीतिक खींचतान ने सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता को प्रभावित किया है। जनता को रोजमर्रा की बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता है। यह स्थिति लोकतंत्र की असफलता की ओर इशारा करती है और जनता का भरोसा कम करती है।
Political crisis in Nepal से संकट में विदेश नीति
नेपाल की विदेश नीति अक्सर उसकी आंतरिक अस्थिरता से प्रभावित होती है। भारत और चीन के बीच संतुलन बनाना हमेशा से कठिन रहा है। राजनीतिक संकट के समय नेपाल कभी चीन के करीब दिखाई देता है, तो कभी भारत पर निर्भर हो जाता है। इससे विदेश नीति की स्थिरता प्रभावित होती है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों से सहयोग भी राजनीतिक अस्थिरता के कारण प्रभावी नहीं हो पाता। विदेश नीति की यह अनिश्चितता नेपाल की अंतरराष्ट्रीय छवि और आर्थिक सहयोग पर नकारात्मक असर डालती है। स्थिर विदेश नीति के लिए मजबूत आंतरिक राजनीति जरूरी है।
नेपाल के लोकतंत्र का भविष्य
Political crisis in Nepal का भविष्य पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि नेता जनता की आकांक्षाओं को कितना समझते और पूरा करते हैं। यदि राजनीतिक दल केवल सत्ता संघर्ष में उलझे रहेंगे, तो अस्थिरता और गहराएगी। लेकिन यदि वे संविधान को मजबूत करें, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाएँ और युवाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करें, तो नेपाल स्थिर लोकतंत्र की ओर बढ़ सकता है। दक्षिण एशियाई राजनीति में नेपाल की भूमिका तभी मजबूत होगी जब उसके भीतर एक पारदर्शी और जवाबदेह शासन व्यवस्था स्थापित होगी। यही भविष्य में नेपाल के लोकतांत्रिक विकास की कुंजी है।
निष्कर्ष:
Political Crisis in Nepal केवल एक आंतरिक समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति को प्रभावित करने वाला मुद्दा है। नेपाल की बार-बार बदलती सरकारें, संविधान से जुड़ी चुनौतियाँ, जातीय और क्षेत्रीय असंतोष, तथा भारत-चीन का भू-राजनीतिक प्रभाव इस संकट को और जटिल बनाते हैं। इसका असर न केवल लोकतांत्रिक संस्थाओं पर पड़ता है, बल्कि अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक सेवाओं पर भी गहराई से दिखाई देता है।
फिर भी, नेपाल के लोकतंत्र में संभावनाएँ बनी हुई हैं। यदि राजनीतिक दल आंतरिक लोकतंत्र अपनाएँ, संविधान में जरूरी सुधार करें और युवाओं को सक्रिय भागीदारी का मौका दें, तो स्थिति बदल सकती है। पारदर्शी शासन और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण नेपाल को स्थिरता की ओर ले जा सकते हैं। आने वाले वर्षों में नेपाल चाहे तो इस संकट को अवसर में बदलकर दक्षिण एशिया में लोकतंत्र का एक मजबूत उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है।
FAQs
- Political Crisis in Nepal क्या है?
नेपाल में बार-बार सरकार का गिरना, दलों के बीच विवाद और संविधान संबंधी असहमति को राजनीतिक संकट कहते हैं। - Political Crisis in Nepal क्यों रहता है?
गठबंधन सरकारें, पार्टी विभाजन और नेताओं के निजी स्वार्थ के कारण नेपाल में सरकार अक्सर अस्थिर रहती है। - 2015 का संविधान राजनीतिक संकट में कैसे प्रभावित हुआ?
संविधान में अल्पसंख्यकों और मधेशी समुदाय की मांगों का सही समाधान न होने के कारण विरोध और आंदोलन बढ़े। - नेपाल में राजशाही कब समाप्त हुई?
नेपाल में 2008 में राजशाही समाप्त कर देश को संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। - Political Crisis in Nepal का आर्थिक असर क्या है?
अस्थिरता के कारण निवेश, पर्यटन, रोजगार और विकास परियोजनाएँ प्रभावित होती हैं। - नेपाल में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका क्या है?
सुप्रीम कोर्ट कई बार संसद भंग या प्रधानमंत्री के निर्णयों को चुनौती देकर लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करता है। - भारत और चीन का नेपाल की राजनीति में क्या प्रभाव है?
नेपाल की भौगोलिक स्थिति के कारण दोनों देशों का राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव स्पष्ट रहता है। - युवाओं पर Political Crisis in Nepal का क्या असर है?
अस्थिरता और बेरोजगारी के कारण युवा राजनीति से दूर होते जा रहे हैं और विदेश पलायन बढ़ रहा है। - नेपाल में पार्टी विभाजन क्यों होता है?
आंतरिक नेतृत्व संघर्ष और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ दलों के विभाजन का मुख्य कारण हैं। - नेपाल में स्थिर लोकतंत्र के लिए क्या जरूरी है?
राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, युवाओं की भागीदारी और संविधान सुधार आवश्यक हैं।
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